मुख्य बिंदु (Highlights):
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ब्रेंट क्रूड की कीमत $94 प्रति बैरल के पार
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दिल्ली, मुंबई, चेन्नई समेत सभी महानगरों में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़े
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ट्रांसपोर्ट और कृषि सेक्टर पर पड़ेगा प्रतिकूल असर
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सरकार फिलहाल टैक्स में कटौती के पक्ष में नहीं
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आने वाले दिनों में और बढ़ सकते हैं दाम
कच्चे तेल की कीमतों में अचानक उछाल
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत एक बार फिर $94 प्रति बैरल को पार कर गई है।
यह बीते छह महीनों में सबसे ऊँचा स्तर है। इस वृद्धि के पीछे मिडिल ईस्ट में राजनीतिक तनाव, ओपेक देशों की आपूर्ति में कटौती, और अमेरिका में डिमांड में वृद्धि जैसे कारण माने जा रहे हैं।
महानगरों में ईंधन मूल्य
शहर | पेट्रोल (₹/लीटर) | डीज़ल (₹/लीटर) |
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दिल्ली | ₹103.75 | ₹92.60 |
मुंबई | ₹106.20 | ₹94.50 |
कोलकाता | ₹104.15 | ₹93.20 |
चेन्नई | ₹104.70 | ₹93.10 |
लखनऊ | ₹102.90 | ₹92.00 |
ईंधन कंपनियों ने संकेत दिए हैं कि अगर वैश्विक दरें इसी तरह बनी रहीं, तो अगले सप्ताह तक पेट्रोल ₹105 से ऊपर पहुँच सकता है।
असर कहां-कहां?
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ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट में वृद्धि से खाद्य वस्तुएं और रोज़मर्रा की चीजें महँगी हो सकती हैं।
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कृषि क्षेत्र, विशेषकर डीज़ल आधारित सिंचाई और फसल ढुलाई, पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
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औद्योगिक उत्पादन में भी लागत बढ़ने के संकेत हैं।
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ऑटो सेक्टर में छोटी दूरी की यात्राओं के लिए CNG या EV की ओर रुझान बढ़ सकता है।
सरकार की प्रतिक्रिया
वित्त मंत्रालय ने संकेत दिया है कि वर्तमान में टैक्स में किसी तरह की कटौती का निर्णय नहीं लिया गया है।
फिलहाल केंद्र सरकार पेट्रोल पर ₹19.90 और डीज़ल पर ₹15.80 एक्साइज़ ड्यूटी वसूल रही है।
वहीं, राज्य सरकारों का वैट अलग-अलग है, जो कुल कीमत को और बढ़ाता है।
बाजार की प्रतिक्रिया
तेल कीमतों में वृद्धि के चलते बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी में मामूली गिरावट देखी गई है।
ट्रांसपोर्ट और ऑटो सेक्टर की कंपनियों के शेयरों में दबाव बना रहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ब्रेंट क्रूड $95 के ऊपर बना रहा, तो महँगाई दर (CPI) पर भी असर पड़ सकता है।
क्या विकल्प हैं?
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इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा
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CNG आधारित ट्रांसपोर्ट का विस्तार
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तेल आयात में विविधता (रूस, ईरान जैसे वैकल्पिक स्रोतों से आयात)
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घरेलू उत्पादन पर ज़ोर
ईंधन की बढ़ती कीमतें न केवल उपभोक्ताओं की जेब पर असर डाल रही हैं, बल्कि देश की पूरी अर्थव्यवस्था पर असर डालने की क्षमता रखती हैं।
अभी सरकार के पास सीमित विकल्प हैं, लेकिन यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी।
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